कच्चा चिट्ठा
Sunday, March 13, 2011
हम मिले
छिटकी हुई चांदनी में दहकती सी साँसें हैं
अनछुए से अहसाह हैं अनकही सी बातें हैं
द्रवित से मन हैं पिघले से अभिमान हैं
बिंधे-बिंधे से हम हैं टूटे-टूटे से संयम हैं।
चहकती भोर को दो महकते बदन मिले
कोने में दुबके हुए समाज के नियम मिले
- मथुरा कलौनी
2 comments:
जयकृष्ण राय तुषार
said...
सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
March 23, 2011 at 4:21 AM
मथुरा कलौनी
said...
तुषार जी
बहुत बहुत धन्यवाद।
March 23, 2011 at 1:03 PM
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2 comments:
सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
तुषार जी
बहुत बहुत धन्यवाद।
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