Thursday, March 24, 2011

प्रेमिका संवाद -3

प्रेमिका संवाद -3

मदन उठ चुका था तथा चाय में उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। अपने मित्र को अनमना देख कर उसने कैफियत पूछी।

'क्या बताऊँ मदन, मेरे किस्मत हमारे गोलपोस्ट की तरह हो गई है। कोई भी उसमें मनमानी से गोल ठोक सकता है।' प्रेमाशिष न मरी हुई आवाज में कहा।

सुबह-सुबह इस तरह घुमा फिरा कर बात मत करो यार। सीधे बताओ कि बात क्या है।सीधे बताने से समझने में सुविधा रहती है।' मदन ने चास की सुड़की मारते हुए कहा।

'अपनी किस्मत को कोस रहा था।' प्रेमाशिष ने कहा।

'क्यों क्या हुआ तुम्हारी किस्मत को?' मदन ने पूछा।

'बहुत कुछ। सबसे पहली बात तो यह है कि मेरी दवाई की दुकान वाली नौकरी चली गई।' प्रेमाशिष ने कहा।

'तुम्हारा यह नौकरी और छोकरी वाला चक्कर मेरी समझ में कभी नहीं आया। कभी नौकरी के लिये छोकरी जाती है और कभी छोकरी के लिये नौकरी। पर दोनों की कमी कभी नहीं हुई तुम्हारे पास। इस बार क्या बात हो गई जो किस्मत को कोस रहे हो?' मदन ने पूछा

'दूसरी बात यह है कि सरला ने संबंध विच्छेद कर दिया है।' उदास प्रेमाशिष ने और भी उदास होते हुए कहा।

'यह अवश्य नई बात है। नौकरी और छोकरी दानों एक साथ चली गईं। अब समझ में आया तुम्हारी उदासी का कारण।' मदन ने कहा।

'मजाक मत करो मदन। और सरला के लिये छोकरी शब्द का प्रयोग न करो तो अच्छा है।' प्रेमाशिष ने कहा।

'क्या नाम बताया, सरला? यार, तुम कब सरला से मिले, कब उससे संबंध स्थापित किया और कब संबंध विच्छेद हुआ! क्योंकि मुझे अच्छी तरह याद है, जब तीन महीने पहले मैं जब तुमसे मिलने आया था तो उस समय तुम्हारी प्रेमिका सुमति नाम की लड़की थी।' मदन ने आश्चर्य करते हुए कहा। उसे मालूम था कि प्रेमाशिष लड़कियों के मामले में पैरों तले घास नहीं उगने देता है। लड़की देखी नहीं कि वह उस पर मर मिटता है। जाने उसके व्यक्तित्व में क्या आकर्षण था कि लड़कियाँ भी उसकी ओर खिंची चली आती थीं। उसके बारे में यह प्रचलित था कि यदि प्रेमाशिष की सभी भूतपूर्व प्रेमिकाओं को एकत्रित किया जा सके तो उनके लिये एक क्रिकेट का मैदान चाहिये। तब भी शायद जगह की समस्या बनी रहेगी। इतना जानने के बाद भी उसके जीवन में लड़कियों का टर्नओवर देख कर आश्चर्य होता है।

'सुमति और उससे पहले की लड़कियाँ तो बस ऐसे ही जान पहचान भर थीं, मदन, पर सरला ने तो मेरी दुनिया ही बदल दी है। उसके बाद मेरे जीवन में और दूसरी लड़की आ ही नहीं सकती है। एक तरह से मैं उसे भूलने के लिये ही तुम्हारे पास आया था। मुझे क्या पता था कि वह भी यहीं है।' प्रेमाशिष ने कहा।

'तुम यहाँ वाली सरला की बात कर रहे हो?'

'हाँ।'

'वही जो अपनी चचेरी बहन के पास रहने आई है?'

'हाँ, वही। अभी दौड़ते हुए मिली थी।'

'उसकी शादी तो प्रसाद से होने वाली है।'

'हाँ, वह भी मिला था। उसे मालूम है कि सरला और मैं शादी करने वाले थे। वह मुझे धमकी भी दे रहा था। कैसा आदमी है यह प्रसाद?' प्रेमाशिष ने पूछा।

'यार, आदमी तो वह ठीक ही था। पर सरला के साथ उसका रवैया किसी की समझ में नहीं आ रहा है। यह सबको मालूम है कि सरला उससे बहुत चिढ़ती है। पर वह सबसे यही कहता फिरता है कि उसकी शादी सरला से होने वाली है। पर उसकी ऐसी-तैसी। तुम्हारा अनादर करने का अधिकार नहीं है उसे।'

'मैं कह रहा था न कि मेरी तो किस्मत ही खराब है।'

'अब इतने दीन भी मत बनो। सरला के मामले में तो मैं कुछ नहीं कर सकता, हाँ, तुम्हारी रोजी-रोटी की समस्या हल हो सकती है, अगर तुम मेरी साझेदारी वाली बात मान लो तो। पहले मानी होती तो अभी तक हम दोनों मालामाल हो गये होते। अब भी देर नहीं हुई है।'

'ठीक है, आज से तुम्हारी और मेरी साझेदारी। तुम कागज तैयार करो और मैं गाँव का मकान बेच कर रुपयों का बंदोबस्त करता हूँ।'
'यह हुई न बात। इसी बात पर मिठाई खाई जाय।'

'खा लेंगे मिठाई भी।'

'अरे तुमने इतना बड़ा निर्णय लिया है, कुछ तो मूड ठीक करो। यह क्या मुँह लटकाए बैठे हो?'

'यह मुँह तो अब जीवन भर लटका ही रहेगा।' प्रेमाशिष ने कहा।

इतने में मदन की माँ ने आकर उन दोनों को याद दिलाया कि विनोद के यहाँ जाना है।

'अरे बाप रे! मैं तो भूल ही गया। तुमको विनोद की याद है न। अरे, वही मोटा, जिससे तुम पिछली बार मिले थे। मैंने तुम्हारे आने के बारे में कहा तो उसने हमें अभी नाश्ते पर बुलाया है।' मदन ने कहा।

'यहाँ की बस यही बात मुझे पसंद नहीं आती है। बात-बेबात में पार्टियाँ।' प्रेमाशिष ने कहा।

'मिलने का कोई तो बहाना चाहिए। फिर हमारी इस छोटी सी पार्क की दुनिया में मनोरंजन का दूसरा साधन भी तो नहीं है। चलो, जल्दी तैयार हो जाओ। आज मैं तुम्हें एक विशेष व्यक्ति से भी मिलवाऊँगा। पहले तुम अपनी यह मुहर्रमी सूरत ठीक कर लो। मुझे लगता है कि तुम सरला वाली घटना का कुछ अधिक ही असर ले रहे हो। तुम्हारा तो सिद्धांत रहा कि तू नहीं और सही, और नहीं और सही।'

'नहीं मदन, सरला के साथ वह बात नहीं है।'

'तुमने बताया नहीं कि सरला ने संबंध क्यों तोड़ा?' मदन ने पूछा।

'गलतफहमी में। तुम निशा को जानते हो न?' प्रेमाशिष ने पूछा।

'हाँ, वही लड़की न, जो तुम्हारे पड़ोस में रहती है?'

'हाँ वही।'

'तुम्हारी भूतपूर्व।'

'हाँ, वही। एक जमाने में वह सोचती थी कि वह मुझसे प्यार करती है। खैर, उस दौर से वह कभी की निकल चुकी है। अभी वह एक परिपक्व युवा महिला है। अब हम दोनों में साधारण दोस्ती है। मुझे लगता है कि किसी ने सरला को इस दोस्ती के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बता रखा है। सरला के बार-बार तिक-तिक करने पर मैंने उसे बताया कि कोई ऐसी-वैसी बात नहीं है। मैंने उससे वादा भी कर लिया कि मैं कभी निशा से नहीं मिलूँगा।' प्रेमाशिष ने कहा। फिर उसने लंबी साँस ली और आगे कहना आरंभ किया,

'उसके बाद एक दिन निशा अपनी सहेली रत्ना को लेकर मेरे घर आई। दोनों का पिक्चर का प्रोग्राम था। वे मेरे लिये भी टिकट लेती आई थीं। मुझे मना करते नहीं बन पड़ा। मना करने का कोई कारण भी नहीं था। ऐसी-वैसी बात तो थी नहीं। बदकिस्मती यह कि उसी हाल में सरला भी अपनी एक सहेली के साथ पिक्चर देखने आई थी। दो और दो मिला कर उसने बाईस बना डाला और मेरी अँगूठी वापस कर दी।'


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अभी और है। आगे कल शाम तक

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