दिखने में दुबले-पतले लेकिन स्वस्थ। उम्र होगी 75 के आस पास। स्मार्टली मंच में आये। कुछ औपचारिक संबोधन के बाद आप बीती सुनाने लगे। उन्हीं के शब्दों में।
मुझे अपनी पत्नी की बहुत चिता लगी रहती है। अभी वह 72 साल की है। वैसे तो वह बहुत एक्टिव है। चलती फिरती है। ऐसी कोई विशेष व्याधि भी नहीं है। ब्लड प्रेशर 120 – 80 ही रहता है। पर पिछले एक साल से कान कम सुनने लगी है। डाक्टरों को दिखाने को कहो तो भड़क उठती है। कहती है कि मैं एकदम ठीक हूँ। इधर मुझे चिंता यह लगी रहती है कि कभी सड़क में गाड़ी का हार्न नहीं सुनाई पड़ा या बस की आवाज नहीं सुनाई पड़ी तो दुर्घटना हो सकती है।
मैंने डाक्टर के पास जाने की बहुत जिद की तो उसने मुझे धमकी दी कि ज्यादा डाक्टर-डाक्टर करोगे तो तुम्हारे कान के नीचे एक जड़ दूँगी।
मैं परेशान और किंकर्तव्यविमूढ़। तभी मुझे अपनी पहचान में एक इएनटी की याद आई। उसको खोज निकाला, फोन किया, अपनी परेशानी बताई। उसने सांत्वना दी कि चिंता करने की कोई बात नहीं है। आज कल ऐसे ऐसे इलाज निकले हैं जिनकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उसने राय दी कि पत्नी को क्लिनिक में न ले आऊँ। सीधे उसके घर पर मिलूँ। वहाँ देखा जाएगा। पर मेरी पत्नी को पहले ही भनक लग गई। वह इतना भड़की, इतना भड़की कि मुझे डर लग गया कहीं सचमुच ही वह मेरे कान के नीचे जड़ न दे। और मुझे बहरा ही न कर दे।
मैं अपने उस इएनटी मित्र के पास गया। मैंने हथियार डाल दिये। मैंने कहा कि मैं अपनी पत्नी को इलाज के लिये उसके पास नहीं ला सकता। तब उसने मुझसे कहा कि मैं पता लगाऊँ कि कितनी दूर तक मेरी पत्नी साधारण वार्तालाप सुन सकती है। उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है। डाक्टर ने मुझे पूरी तरह हिदायत दी कि कैसे क्या करना है। लिहाजा जब पत्नी रसोई में थी मैं बाहर के दरवाजे के पास गया और पूछा
'लक्ष्मी आज खाने में क्या बना रही हो?'
उत्तर नदारद।
फिर मैं दस कदम आगे बढ़ा और वही सवाल दोहराया। उसने सुना ही नहीं। फिर उत्तर नदारद।
मैं आगे बढ़ा और रसाई के दरवाजे से कहा
'लक्ष्मी आज खाने में क्या बना रही हो?'
उत्तर नदारद।
मैं बहुत डर गया। हालत बहुत खराब लग रही थी। मैं उसके एकदम पास गया और पूछा 'लक्ष्मी आज खाने में क्या बना रही हो?'
लक्ष्मी चिल्ला कर बोली, 'क्या हो गया है तुमको, बहरे हो गये हो क्या। वही सवाल बार बार क्यों पूछ रहे हो। तीन बार तो बता चुकी हूँ कि आज खाने में बिसिबेले भात है।
फिर उन सज्जन ने अपने कान से सुनने वाला यंत्र निकाला और कहा प्राब्लम लक्ष्मी के साथ नहीं मेरे साथ थी।
वहाँ दो सौ आदमियों की भीड़ थी। एक क्षण तो सन्नाटा रहा, अगले क्षण हॅसी का जो दौरा पड़ा लगता था छत गिर जाएगी।
8 comments:
its nice
bilkul mere baba ki tarah
हा हा हा! मज़ा आ गया पढ़ के Sir
हा हा हा! मज़ा आ गया पढ़ के Sir
aisa hi hota hai
bahut khoob
महाराज ,,,,प्रणाम ..बहुत ही रोचक है ,,,,अंत में तो पूछो ही मत ,,,,कमाल है ...फिर से प्रणाम
हा हा!! अपनी कमीज के दाग भला किसको दिखते हैं. :)
मजा आ गया भगवन्..... आपको तो साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग में पढ़ते रहे है....
आप सभी का ब्लॉग पर आने और टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
योगेन्द्र जी, मेरा अहोभाग्य कि आपने याद रखा।
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