Sunday, May 9, 2010

जरा ऊँचे स्वर में बोलिये

मुझमें एक व्याधि है, वह यह कि जब आप मुझसे बहुत धीमे स्वर में बात करते हैं तो मेरी समझ में नहीं आता है। सुनाई पड़ता है कि आप कुछ कह रहे हैं पर समझ में नहीं आता है कि आप क्या कह रहे हैं। यह हो सकता है आपको मामूली बात लगे पर यह एक भयंकर समस्या है।

जब छोटा था तो समझ में ही नहीं आता था कि सब मेरा मजाक क्यों उड़ाते हैं। बातें मेरी लोगों की समझ में क्यों नहीं आती हैं? ऐसा क्या है जो औरों में है और मुझमें नहीं है। इस ऊँचा सुनने की व्याधि ने मुझे अंतर्मुखी बना दिया था।

पता नहीं कब, पर एक दिन मेरी समझ में आ ही गया कि मेरी समस्या क्या है। मैंने समाधान यह निकाला कि समझ में नहीं आये तो पूछो। उसी बात को दूसरी बार दोहराने में लोग बहुधा अपना स्वर ऊँचा कर लेते हैं।

एक स्थिति का जायजा लीजिये। आपको ऊँचा सुनने की आदत है। आपका बॉस आपको बुलाता है। बहुत धीमे स्वर में आपको कुछ निर्देश देता है। आपको सुनाई तो पड़ा कि आपसे कुछ करने के लिये कहा गया है, पर यह एकदम पल्ले नहीं पड़ा कि क्या कहा गया। यह स्थिति घर में पत्नी के साथ आ सकती है, आफिस में आ सकती है। मित्रों की बैठक में आ सकती है अंतरर्ाष्ट्रीय सम्मेलन में आ सकती है। कवि सम्मेलन में आ सकती है। हर उस जगह आ सकती है जहाँ लोगों ने ठान रखी हो कि वे आपसे धीमे स्वर में बात करेंगे। मधुमक्खी की तरह भनभनाहट वाले स्वर में।

तो ऐसे में क्या करेंगे आप। मैं तो जैसा कि मैंने कहा है मैं आव देखता हूँ न ताव, सीधे-सीधे पूछ बैठता हूँ कि कृपया आपने मुझसे जो कहा उसे ऊँचे स्वर में दोहराइये क्यों कि मैं समझा नहीं आपने क्या कहा।

मैंने तो एक रणनीति ही बना ली है। बस ऐलान कर देता हूँ कि मैं ऊँचा सुनता हूँ। कुछ लोग विश्वास कर लेते हैं कि मैं सचमुच ऊँचा सुनता हूँ। कुछ नहीं नहीं भी करते। ऐसे एलान में बचने का निकास रहता है। जैसे, आपने ऐसा कहा था क्या, मैंने तो नहीं सुना। आपको तो मालूम ही है कि मैं ऊँचा सुनता हूँ।

कुछ लोग तो आदतन नीचे स्वर में बोलते हैं। उनको ऊँचा बोलने के लिये कहा जाय तो ऊँचे स्वर में बोलने लगेंगे पर कुछ समय बाद ही फिर अपने उसी पुराने धीमे स्वर में आ जाते हैं। उनको बार बार ऊँचा बोलने के लिये टोकना भी अच्छा नहीं लगता, विशेष कर जब आपको छोड़ कर सभी लोग बड़ी तन्मयता से उन्हें सुन रहे होते हैं। आप कितनी बार उन्हें टोकेंगे!

कुछ लोग यह जानते हुये भी कि आप ऊँचा सुनते है, ऊँचा नहीं बोलेंगे। उनका अहम् इतना बड़ा होता है कि उन्हें लगता है कि उनके ऊँचा बोलने से उनके अहम् में क्रैक पड़ जायेगा। ऐसे लोगों से सावधान रहना पड़ता है। भग्न अहम् वाले लागे आपके स्वस्थ्य के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।

ऊँचा सुनने वालों की एक और समस्या है। औरों की हो न हो, पर मेरी है। वक्ता धीमे स्वर में बोल रहा है और आपको बात समझ में नहीं आ रही है। तो सुनने वाले का ध्यान भटकेगा या नहीं। जैसे किसी मीटिंग में, वक्ता आपको समझा रहा है कि किसी विशेष समस्या का कैसे सामना करना चाहिये और आप वक्ता के बगल में बैठी सुंदरी को कल्पना के घोड़े उड़ाये ले जा रहे हैं।

खैर अपनी इस समस्या के साथ काफी वक्त गुजार लिया है। अब तो हम बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि हम सठिया गये हैं इसलिये आप हमसे साफ साफ और ऊँचे स्वर में बोलिये।

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