Tuesday, May 11, 2010
विषकन्या
कुछ दिन पहले मैंने एक लघु उपन्यास 'विषकन्या' की रचना की थी। उपन्यास में रहस्य और रोमांच तो है ही, साथ ही मैंने हास्य का पुट देने का प्रयत्न किया था। मुलाहिजा फरमाइये
कार में जिन्दा लाश
बेला को इन्तजार करते चालीस मिनट हो गए थे। एक तो खड़े खड़े उसके पाँव दुख रहे थे। ऊपर से साढ़े दस बज गए थे। सामने रेस्तराँ खुल गया था और आते जाते लोग उसे घूर रहे थे। पर विक्टर का कहीं नामोनिशान नहीं। यह बेला के स्वभाव में नहीं था कि वह किसी का एहसान ले। जिन्दगी में इतना अनुभव तो उसे हो ही गया था कि एहसान एक बोझ होता है जो कभी सरल रिश्ते को भी जटिल बना सकता है। पर विक्टर की बात कुछ और थी। विक्टर उसका पार्टनर था। फिर उसका घर ऐसी जगह था कि आफिस जाने के लिए दो बसें बदलनी पड़़ती थीं। अगर कभी सीधी बस मिल भी गई तो वह कभी भी समय से नहीं पहुँचाती थी। विक्टर के पास कार थी। जब उसने कहा कि आज वह सीधे आफिस जा रहा है इसलिए वह उसके साथ कार में आफिस आ सकती है, तो उसने हामी भर दी। बस में धक्के खाने से तो अच्छा था कि वह विक्टर का साथ झेल ले। विक्टर कभी समय से पहुँचे तो, उसके लेने के लिए। आज से अब और नहीं करेगी वह विक्टर का इंतजार। गुस्से में आग बबूला हो कर वह टैक्सी स्टैंड की ओर मुड़ी ही थी कि विक्टर अपने छकड़े पर आ पहुँचा।
'पैंतालीस मिनटों से मैं यहाँ पर खड़ी हूँ। तुमने इतना भी नहीं सोचा .......!'
'शांत बेला, शांत। लोग देख रहे हैं।'
'देखते हैं तो देखने दो। हद होती है! तुमने मुझे पैंतालीस मिनट सड़क पर खड़ा रखा। खड़े-खड़े पाँव दुख गए। आने जाने वाले लोग घूर रहे हैं।'
'तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि लोग तुम्हें घूर रहे हैं। तुम्हें मेरा शुक्रगुजार होना चाहिए कि मैंने तुम्हें यह मौका दिया कि लोग तुम्हें देखें। तुम्हें घूरें।'
'विक्टर तुम अपनी बकवास बंद करो।' बेला ने लगभग चीखते हुए कहा।
'अरे अरे क्या गजब कर रही हो। सड़क पर इस तरह चिल्लाओगी तो लोग समझेंगे कि मैं तुम्हें छेड़ रहा हूँ।'
'मेरी बला से। बल्कि मैं तो खुश हूँगी अगर लोग ऐसा समझें और तुम्हें जूते चप्पलों से पूजें।'
'ठीक है भई। तुम्हारा गुस्सा भी ठीक है। सॉरी, आने में देर हो गई।'
'देर हो गई! पैंतालीस मिनट!! क्या बहाना बनाकर आए हो?'
'बहाना नहीं, ठोस कारण है। नब्बे किलो तो होगा ही।'
'क्या बक रहे हो?'
'जिसके कारण देर हुई उसका वजन बता रहा था। इधर देखो।' कह कर उसने कार की पिछली सीट की ओर इशारा किया।
बेला ने देखा और उसकी आँखें फट पड़ी। मुँह स्प्रिंग लगे बक्से के ढक्कन की तरह खुल गया।
'मुँह बंद करो।' विक्टर ने कहा।
'लाश!'
'लाश नहीं बेहोश है।'
'कौन है यह?' बेला ने पूछा।
'मुझे क्या मालूम?' लापरवाही-सी दिखाते हुए विक्टर ने कहा।
'तुम्हारे ऐसा कहने का क्या मतलब है विक्टर! तुम्हारी कार की पिछली सीट में एक आदमी बेहोश पड़ा है। इस बेहोश आदमी के साथ तुम मुझे पिकअप करने आ रहे हो। मैं पूछती हूँ तो कहते हो कि मुझे क्या मालूम। आखिर क्या जताना चाहते हो तुम! तुम्हारी प्राब्लम क्या है विक्टर?' बेला ने कहा।
कुछ आने जाने वाले लोग रुक कर कार की पिछली सीट पर पडे़ व्यक्ति को देखने लगे थे।
'चलो पहले कार में बैठो, नहीं तो यहाँ मजमा लग जाएगा।' विक्टर ने कहा।
'कौन है यह?' कार चल पड़ी तो बेला ने पूछा।
'मुझे नहीं मालूम।' विक्टर ने उसी लापरवाही से कहा।
'विक्टर, कार रोको।' बेला ने आदेश दिया।
'क्यों?' विक्टर ने पूछा।
'मैं तुम्हारे साथ नहीं जाना चाहती।'
'पर क्यों?'
'एक तो तुमने इतना इंतजार करवाया और अब पहेलियाँ बुझा रहे हो? ढंग से बात नहीं कर सकते हो? मेरी ऐसी कोई मजबूरी भी नहीं है कि मैं तुम्हें झेलती रहूँ।
पूरा उपन्यास यहाँ उपलब्ध है
http://www.abook2read.com/vishkanya.html
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