बनने का बड़ा शोर था कैसे खामोशी से ढह गया।
कौन है जो कहकहे सब बटोर कर ले गया
नादॉं तो न थे हम, इन्तहॉं थी मस्ती की।
खतरों से बेखबर रवानी में बहते गये।
बेमुरव्वत तो आशियॉं जला के चले गये
हम जल भी न सके, सुलग कर रह गये।
कॉफी की महफिलें, देर से आना बनाकर बहाना
चले थे साथ जो दो कदम, वही याद करके रह गये
3 comments:
एक सुन्दर पोस्ट ....बधाई स्वीकारे
http://athaah.blogspot.com/
sundar rachna.
इस रचना के लिये धन्यवाद
ऐसे लेखन कि ब्लोग जगत को आवयश्कता है
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