Friday, October 23, 2009

परसनल स्पेस

तारा को लेने जा रही हो या मैं जाऊँ?

तारा अब घर नहीं आना चाहती है। पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने काल सेंटर ज्वाइन कर लिया है। कहती है जब घर ही नहीं है तो क्यों आऊँ। फिर वह हम दोनों में से किसी एक को चुनना नहीं चाहती है। मिलना है तो हमें ही जाना पड़ेगा उसके पास। वह नहीं आयेगी।

हमने तो उसके सामने कभी ऐसा नहीं दिखाया कि हम अलग हो गये हैं। उसे मालूम न हो करके इसी घर में रह कर हम एक दूसरे तो झेलते रहे हैं। उसको कैसे पता चला?

सारी दुनिया को मालूम हो गया है तो उसे क्यों नहीं मालूम होगा। फिर मत भूलो कि वह हमारी ही बेटी है।

यह तो ठीक नहीं हुआ। मेरा जीवन तो नर्क बन ही गया है, पर मैं अपनी बच्ची पर कोई आँच नहीं आने देना चाहता हूँ।

किस नर्क की बात कर रहे हो तुम। छुट्टे साँड़ की तरह तो शहर में घूम रहे हो।

सभ्य भाषा का प्रयोग करो।

मैंने सभ्य भाषा का ही प्रयोग किया था। असभ्य भाषा का प्रयोग करूँ तो तुम्हारी दुम उग आयेगी जिसे तुम अपनी टाँगों में दबा कर उछलने लगोगे।

देखो तुम्हारी ऐसी ही कटु बातों से आज हम इस मुकाम पर पहुँचे हैं।

इसी मुकाम तक तो पहुँचना चाहते थे तुम। यही तो तुम्हारी मंजिल थी न। अब क्यों अफसोस कर रहे हो! याद है इस मुकाम तक पहुँचने के लिये तुमने क्या किया था? उस कुर्सी की एक टाँग तोड़ी थी। अभी तक अपनी टूटी टाँग ले कर एक कोने से लगी है बेचारी। हमारे रिश्ते की तरह।

कुर्सी का रोना क्या रो रही हो? अपनी भूल गई तुमने भी तो किचन के सारे बरतन तोड़े थे। मैं सँभालने गया तो मेरा सिर भी तोड़ दिया था।

बीच में आओगे तो लगेगी ही। जानबूझ कर नहीं तोड़ा था। क्या कहा था तुमने? अरे माडर्न बनो... आधुनिक बनो... आजकल क्या कहते हैं उसे, परसनल स्पेस का जमाना है... वह पुराना जमाना अब नहीं रहा कि एक दूसरे में घुसे चले जाओ। अब क्या हुआ!

मैंने तो तुम्हारी भावना को शब्द दिये थे। तुमको ही चाहिए था यह परसनल स्पेस। क्या कहा था तुमने कि मैं तुमको घेरता हूँ और तुम्हारा दम घुटता है यहाँ।

अब तो मिल गया न तुमको तुम्हारा परसनल स्पेस। कितना परसनल स्पेस चाहिए तुम्हें। तुम्हारे चारों ओर तो खाली खाली है। कोई तुम तक पहुँचना भी चाहे तो यह खाली परसनल स्पेस तय करने में महीनों लग जाएँगे।

तुम्हारा परसनल स्पेस भी कम बड़ा नहीं है। मैं भी तो तुम तक पहुँचने के लिये पिछले छह महीनों से लगा हुआ हूँ।

बकवास मत करो। तुम छह महीनों तो अपना ही परसनल स्पेस पार नहीं कर पाओगे। अपनी खोह से बाहर निकलो तो मुझ तक पहुँचने की बात करना।

ठीक है। थोड़ा तुम चलो और थोड़ा मैं। हमारा मिलना जरूरी है। मैं नहीं चाहता कि मैं... हम अपनी बच्ची के सामने छोटे पड़ें।

हम नहीं मैं बोलो।

ठीक है मैं। मैं नहीं चाहता कि मैं तारा के सामने छोटा पड़ूँ। थोड़ा तुम अपने परसनल स्पेस से बाहर आओ। और थोड़ा मैं।

मेरा कोई परसनल स्पेस नहीं है। यदि है भी तो इसमें तुम आराम से समा सकते हो। तारा तो पहले से ही यहाँ है।

ठीक है तो मैं आऊँ फिर?

आ सकते हो पर जूते खोल कर बाहर ही रखना। माने तुम्हारा परसनल स्पेस।

2 comments:

Udan Tashtari said...

सही संदेश है गुढ़ अर्थ लिए.

Kalimullah said...

Divorce, the word that was taboo till sometime back, has today become the easiest solution for people having problems in marital life. Slightest tensions, slightest arguments and married couples are ready to go their separate ways
Personnel space कहां से आएगी जब दिल में जगाह न हो । आपकी short story में बोहोत खूबसुरती से ये मसला बताया गया हॆ।