रस्में पुरानी ही सही, पांव की बेड़ियां ही सही
हो कर दूसरों के, रस्में निभाकर तो देखो
तुम्हारी थी दुनियाँ तुम्हारी ही है दुनियाँ
हमें भी कभी दुनियाँदारी सिखा कर तो देखो
खुली हवा में सांस ले ली, मेड़ों मे अठखेलियां कर ली
अब बंद है आशियाना, इसमें समा कर तो देखो
आदतें वही औ' लीक पर चल रही है जिन्दगी
कभी कदम से कदम मिला कर तो देखो
न चांद हमारा, न चांदनी हमारी
अनजान डगर पे चलना सिखा कर तो देखो
नैना लगा कर हारे, सपने संजोए बैठे हैं
दौड़े आयेंगे हम, बुला कर तो देखो
मथुरा कलौनी
4 comments:
आपकी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी .. धन्यवाद।
"रस्में पुरानी ही सही, पांव की बेड़ियां ही सही
हो कर दूसरों के, रस्में निभाकर तो देखो"
बहुत बढ़िया।
बुलाय रहे हैं, आ कर तो देखो।
नैना लगा कर हारे, सपने संजोए बैठे हैं
दौड़े आयेंगे हम, बुला कर तो देखो
bahu hi sunder rachna hai badhai....
na chaand hamara na chandi hamari
kya umda baat hai.
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