Friday, June 26, 2009

कभी आ कर तो देखो



रस्में पुरानी ही सही, पांव की बेड़ियां ही सही
हो कर दूसरों के, रस्में निभाकर तो देखो

तुम्हारी थी दुनियाँ तुम्हारी ही है दुनियाँ
हमें भी कभी दुनियाँदारी सिखा कर तो देखो

खुली हवा में सांस ले ली, मेड़ों मे अठखेलियां कर ली
अब बंद है आशियाना, इसमें समा कर तो देखो

आदतें वही औ' लीक पर चल रही है जिन्दगी
कभी कदम से कदम मिला कर तो देखो

न चांद हमारा, न चांदनी हमारी
अनजान डगर पे चलना सिखा कर तो देखो

नैना लगा कर हारे, सपने संजोए बैठे हैं
दौड़े आयेंगे हम, बुला कर तो देखो

मथुरा कलौनी

4 comments:

संगीता पुरी said...

आपकी रचना मुझे बहुत अच्‍छी लगी .. धन्‍यवाद।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

"रस्में पुरानी ही सही, पांव की बेड़ियां ही सही
हो कर दूसरों के, रस्में निभाकर तो देखो"

बहुत बढ़िया।

बुलाय रहे हैं, आ कर तो देखो।

cartoonist anurag said...

नैना लगा कर हारे, सपने संजोए बैठे हैं
दौड़े आयेंगे हम, बुला कर तो देखो
bahu hi sunder rachna hai badhai....

Unknown said...

na chaand hamara na chandi hamari

kya umda baat hai.