Sunday, February 17, 2008

वे दिन

वर्तमान सदा रहा है बोर
दैनिक चिंताओं और परेशानियों का शोर
कितना मधुर होता है अतीत
वर्तमान जब होता है व्यतीत।

वह स्कूल औ' कॉलेज के दिन
चिंता परीक्षाओं की, किताबों की घुटन
अनुशासन में बँधा तब का जीवन
आज लगता कितना स्वच्छंद

वह बाप की डपट औ' माँ की फटकार
पहली सिगरेट सुलगाते जब चाचा ने देखा
वह काफ़ी हाउस के झगड़े तोड़फोड़
खींच रहे हैं होठों में स्मित रेखा

एक के बाद एक आ रहे हैं
बीते दिन पकड़कर यादों की डोर
और अपेक्षा में बैठा हूँ मैं
कब जाएगा वर्तमान अतीत की ओर
- मथुरा कलौनी

1 comment:

MG said...

Dear sir,

I chanced on your blog by accident and i must say that your words sound just like my dad. Maybe i am missing him too much... but thank you for sharing your creations.

With regards,
Manasi