यह क्या बात हुई कि प्यार जताने के लिये साल का एक दिन निश्चित हो। ऐसी ऊलजलूल बातें पश्चिम से ही इम्पोर्ट होती हैं। जैसे वैलेन्टाइन डे न हो तो दुनियाँ से प्यार ही गायब हो जाय। प्यार तो कभी भी हो सकता है। उसे जताने के लिये वैलेन्टाइन डे तक इंतजार करना वेवकूफी है। यह निर्विवाद सत्य है कि प्यार कभी भी हो सकता है। पर रहता कितनी देर है, यह विवादास्पद है। आज प्यार हुआ तो मेरी मानिये आज ही गुलाब का फूल दे डालिये। इंतजार कीजियेगा तो हो सकता है कि प्यार हुआ, उफान पर आया और गुलाब का फूल देने से पहले ही फिस्स हो कर मर गया। वैलेन्टाइन डे तक तो पता चला पार्टनर चार बार बदल चुके हैं।
आखिर है क्या यह प्यार?
मेरे हिसाब से प्यार एक भावनात्मक क्षण है। आज से सहस्रों वर्ष पहले जब प्यार का आविष्कार हुआ था तब लोगों के पास कामकाज तो अधिक था नहीं। पूरा का पूरा जीवन होता था उनके सामने, भावना में बहने के लिये। तभी शायद कहा गया होगा कि प्रेम ही जीवन है। पर आजकल की भागमभाग में प्रेम के लिये केवल क्षण ही उपलब्ध है। लड़का-लड़की, भावना, वातावरण आदि जब सही मात्रा में मिक्स होते हैं तो झट से प्यार हो जाता है। जब वातावरण में किसी भी कारण थोड़ा भी बदलाव आता है तो मिक्सचर बिगड़ जाता है। मिक्सचर बिगड़ा तो प्यार समाप्त। यह अगले ही क्षण हो सकता है।
आप नहीं मानते!
2 comments:
main maanti hun :-)
-Manasi
Hi Manasi,
I am glad that you like some of my posts. Thanks for your comments.
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