आज नुक्कड़ पर बम फटा था
कुछ जानें गई थीं
सड़क पर खून बिखरा था
कुछ जानें गई थीं
सड़क पर खून बिखरा था
टीवी चैनलों में, जींस पहने हाथ में माइक लिए रिपोर्टर
बारबार दिखा रहे थे
सड़क पर कुछ लावारिश जूते, चप्पल
और रोते दहाड़ते हुए परिजन
दहशत का माहौल था
अब और भी गाढ़ा हो चला था
डर लग रहा था
उनका इलाका था पर जाना था जरूरी
जेब में चाकू रख लिया कि क्या पता
सुनसान गली सहमा सहमा सा मैं
घड़कते दिल से
अपने को समेटे चला जा रहा था मैं
तभी मेरे पीछे किसी के चलने की सी आवाज आई
चप... चप... चप... चप
मेरी तो जान साँसत में फँस गई
मैंने कदम तेज कर दिये तो आवाज भी तेज हो गई
चप – चप – चप - चप
मैं रुका तो आवाज भी रुकी
डर के मारे मेरी घिघ्घी बँध गई
मैंने लैंप पोस्ट की आड़ ली
पीछे देखा, एक लंबा-चौड़ा हट्टा-कट्ठा आदमी
मैं पसीने-पसीने
सोचा आज तो मैं तो गया
मेरा छोटा-सा चाकू क्या कर लेगा इसके सामने
मुझे तो ठीक से चाकू पकड़ना भी नहीं आता
कैसे मारेगा वह मुझे
क्या पता वह पीछे से चाकू फैंकेगा
या पकड़ कर गला रेतेगा
नहीं नहीं वह ऐसे कैसे कर सकता है
कैसे मार सकता है
वह जरूर पहले पता करने की कोशिश करेगा कि
मैं उसके धर्म का हूँ या नहीं
यदि न निकला तो
अभी तो पूरी जिंदगी पड़ी थी मेरे सामने
अपने को बचाने के लिए मैं दौड़ पड़ा
मेरे पीछे वह भी दौड़ेने लगा
ठोकर लगी मैं गिर पड़ा
वह मेरे ऊपर झुका
उसकी आँखें लाल-लाल
चेहरा खूँखार
उसने मेरा हाथ पकड़ा
मुझे झटके से उठाया और बोला
नुक्कड़ पर बम फटा है
मैंने देखा आप सड़क पर सहमे-सहमे जा रहे हैं
मुझे इस सुनसान सड़क पर मुझे डर लग रहा है
मैं शहर में नया हूँ
मैं आपके साथ बस स्टॉप तक चलूँ क्या
एक से दो भले
मेरी जान में जान आई
मैंने राहत की साँस ली
लगा अभी मानवता बाकी है
इन्सानियत से भरोसा नहीं उठा है
पर किस का भरोसा
मेरा या उसका !
आज नुक्कड़ पर बम फटा था
कुछ जानें गई थीं
सड़क पर खून बिखरा था
5 comments:
सच डर इतना बैठा जा रहा है लोगों के दिलों में की किसी पर विश्वास करना आसान नहीं रहा ..
बहुत अच्छी प्रेरक रचना ...
Mathura ji Kyla baat hai! Ati uttam.
कविता जी, लक्ष्मी जी, बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत ही प्रेरक रचना है
गोस्वामी तुलसीदास
सुन्दर प्रस्तुति !
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
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