चेहरा सुदर्शन हो और भोलापन लिये हुये हो तो यह अच्छे नाक-नक्श और भोलेपन का यह मेल बड़ा जानलेवा सिद्ध हो सकता है। चेहरा देख कर ही इनके सौ खून माफ कर देने को दिल करता है। यहाँ पर उनकी बात नहीं हो रही है जो बड़े जतन से भोलापन ओढ़े रहते है जिनके बारे में कहा गया है कि 'भोली सूरतिया दिल के बड़े खोटे इत्यादि। हम बात कर रहे है उनकी जिनका भोलापन जन्मजात होता है। यह और बात है कि वे अपने इस भोलेपन की शक्ति को जानते हैं और इसका प्रयोग भी करते हैं।
ऐसे ही एक युवक हमारी कलायन नाट्य संस्था में भी हैं। आजकल हमारी नाट्य संस्था दो नाटकों के बीच में है। यानी पिछले नाटक का मंचन हो चुका है और अगला अभी आरंभ नहीं हुआ है। बड़ा ही कष्टप्रद और उलझाने वाला होता है यह समय। अन्य नाट्य संस्थाओं में भी शायद ऐसा होता हो हमारी संस्था में तो ऐसा होता ही है कि सभी कलाकार मंच पर अभिनय करने के इच्छुक रहते हैं। नाटक को मंच तक लाने में जो पापड़ बेलने पड़ते हैं उससे उनको कोई मतलब नहीं होता है।
कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी कुछ करने की इच्छा बड़ी बलवती होती है, और बहुत कुछ कर गुजरने की क्षमता भी रखते हैं पर अपनी इसी इच्छा को ही वे अपनी उपलब्धि मान बैठते है। ये सज्जन भी ऐसे ही हैं। यह तथ्य स्वीकारने में मुझे बहुत कष्ट होता है पर करने के लिये मुझे वाध्य किया जा रहा है। कैसे?
लिहाजा फरमाइये।
बहुत पहले ही तय हो गया था कि अगला नाटक चंद्रकान्ता होगा। नाटक तो मैंने बहुत पहले ही लिख लिया था पर मंचन के लिये यथेष्ट साहस नहीं जुटा पा रहा था। कलायन सभी ने सदस्यों ने भरपूर सहयोग देने का तो वादा किया है पर मैंने अपने अनुभव से सीखा है कि ऐसे वादों का अर्थ यह निकलता है कि 'आप आगे बढ़िये अभिनय करने के लिये हम तैयार हैं'।
इंद्रिय शिथिलता कहिये या कुछ और कि मैं नाटक आरंभ नहीं कर पा रहा था।
फिर मैं ने सोचा यह जो सभी भरपूर सहयोग का वादा कर रहे हैं इसका लाभ उठाना चाहिये। मैंने इन सुदर्शन व्यक्तित्व वाले सज्जन के जिम्मे एक काम सौंपा। वह था, नाटक चंद्रकान्ता के लिये टेकनिकल टीम का गठन करना। पिछले अक्टूबर से वे इस काम में लगे हैं। पर दिसंबर तक टीम नहीं जुटी। कभी पूछा कि क्यों भई काम कितना आगे बढ़ा तो उत्तर मिलता था कभी 'मैं फलाँ से बात करनेवाला हूँ' तो कभी 'मैं सोच रहा हूँ फलाँ को आजमाया जाय।'
मैं कहता ' भई दिसंबर जाने वाला है, ऐसे तो नाटक आरंभ होने में बहुत देर हो जायेगी।'
इसके उत्तर में एक हाई वोल्ट की जानलेवा मुस्कान। और मैं चारों खाने चित।
मुझे विश्वास है इन सज्जन ने टेकनिकल टीम के गठन का प्रयास अवश्य किया होगा। पर मस्तिष्क की उपज को क्रियान्वित करना और बात है। इस कारण से, या उस कारण से या कई करणों से टीम नहीं जुटी।
मुझे अपने ऊपर बहुत ग्लानि हुई कि एक नवजवान के कमजोर कंधों में मैंने इतना बड़ा बोझ डाल दिया। इस उमर में जब उन्नति करने भावना होती है, उत्साह होता है। देश को भी आगे बढ़ाना होता है। और कहाँ मैंने यह एक इतना बड़ा काम जिससे न तो देश की उन्नति होती है और न ही अपना करिअर आगे बढ़ता है, इनको सौंप दिया।
लिहाजा मैंने उनका बोझ हलका कर दिया और उनके जिम्मे इतना ही काम सौंपा कि बस कलायन के वरिष्ठ कलाकारों की एक मीटिंग बुलाओ। उसी मीटिंग में सब मिल करक तय करेंगे।
उत्तर मिलते हैं
अरे भूल गया सर।
आज तो ऑफिस में सॉस लेने की फरसत भी नहीं मिली।
आज नहीं हो पायेगा, किसी शादी में जाना है।
कल मैं नहीं आ पाया सर, क्या बताऊँ बॉस ने रात के दस बजे तक छोड़ा ही नहीं। बाकी लोग आये थे क्या?
कल मैं कोलकाता जा रहा हूँ।
कभी सामना हो गया तो, जी हाँ आप समझ गये होंगे, वही हाई वोल्ट वाली जानलेवा मुस्कान और मैं चारों खाने चित।
4 comments:
बहुत बढ़िया पोस्ट.
"कल कोलकाता जा रहा हूँ."
सर, उनसे कहिये कोलकाता आ रहे हैं तो मुझसे मिलते जाएँ. फिर देखिये, वहां पहुंचकर ही सारा काम करना शुरू कर देंगे. वैसे एक बात कहूँ. हाई वोल्टेज वाली मुस्कान से डर तो मुझे भी है....:-)
Bahut badiya kaha sir...bahane to hum bhi banate hain lekin high voltage ki muskaan ke saath nahin...low voltage ki sencerity ke saath (-:
Gurudev...Aap?????
बहुत बढ़िया पोस्ट...
Post a Comment