Friday, August 7, 2009
वह एक आवारा कुत्ता था।
मैं तहसील के बाहर पत्थर पर बैठा इंतजार कर रहा था। वह मंथर गति से शाही चाल चलता हुआ मेरे पास आया। अपनी पनीली आँखों से मुझे देखने लगा मानो कह रहा हो
'कुछ खिलाना-वाना है तो बोलो। नहीं तो मैं चलता हूँ।'
मुझे उसका यह एटिच्यूड भा गया। मुझे भी भूख लग ही रही थी। पास की दुकान से पूरी-भाजी के दो पत्तल लिये। एक अपने लिए और दूसरा उसके लिए। उसके सामने पत्तल परोसा। उसने पहले मेरी ओर देखा और फिर खाने पर ध्यान दिया। खाने के बाद वह अपनी राह चला और मैं अपनी राह।
दो दिन यही कार्यक्रम चला। तीसरे दिन भी वह आया। चाल मतवाली थी। मेरे पास आते-आते वह लड़खड़ाया और गिर गया। उसके जबड़े भिंच गये थे। वह अप्राकृतिक रूप से बहुत जल्दी-जल्दी साँस लेने लगा। साँस लेने में उसे कष्ट हो रहा था।
'लगता है इसको लकवा मार गया है।'
'अरे कोई इसे अस्पताल ले जाओ।'
'इसके मुँह में पानी डालो।'
किसी ने उसके मुँह के ऊपर एक गिलास से पानी डाला। वह उठ खड़ा हुआ। फिर लड़खड़ा कर गिर पड़ा। तभी तहसील के अंदर मेरा नाम पुकारा गया और मैं अंदर चला गया। लगभग एक घंटे के बाद बाहर आया तो वह उसकी साँसें बंद हो चुकी थीं। उसके मुँह के ऊपर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं।
यह एक साधारण सी घटना है। गली का कुत्ता था, मर गया। पर मैं भुला नहीं पा रहा हूँ। उसका छरहरा बदन, उसकी वह चाल, उसका उन अभेद्य पनीली आँखों से मुझे देखना। संक्षिप्त ही सही, कहीं तो कोई अपरिभाषित संपर्क सूत्र था हम दोनों के बीच।
वह एक आवारा कुता था।
आवारगी का अपना रोमांच है, अपना रोमांस है। आदमियों की बात करें तो आवारगी की पराकाष्ठा अकबर इलाहाबादी के इस शेर में निहित है।
हुए इस कदर मुहज्ज़ब, कभी घर का मुँह न देखा
कटी उम्र होटलों में, मरे तो अस्पताल जा कर।
उस कुत्ते की बात करें तो मानो वह कह रहा हो
न रहे हम कभी किसी के, न कोई हमारा।
तुम्हें ही मुबारक अब ये गली ये चौवारा।
(मुहज्ज़ब - सभ्य)
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2 comments:
sir aapki ye post mujhe choo gayi ... jaanwaro me maujood apnapan ...kaash insaano me hota ji ...
aabhar
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
न रहे हम कभी किसी के, न कोई हमारा।
तुम्हें ही मुबारक अब ये गली ये चौवारा।
Bda hi hriday sparshi chitra chicha haiaapne ...kutte ki to ek sadharan ghatna hai par uski vedna ko jis tivarta se aapne mahsoos kiya wo ek samvedanshil manushya hi kar sakta hai...!!
Aapka varnan bhavuk kar gya ...aapki lekhan kushalta ka bhi parichayak hai yah sansmaran...!!
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