Thursday, December 24, 2009

मैं भी कहाँ शिकायत कर रहा हूँ!

दफ्तरी जीवन से अवकाश प्राप्त करने के बाद अपनी दिनचर्या एकदम बदल गई है। सुबह देर से नींद खुलती है। आलस के मारे बिस्तर छोड़ते छोड़ते आठ तो बज ही जाते हैं। सुबह घूमने की इच्छा इच्छा ही रह गई है। आज दृढ़ निश्चय के साथ सुबह प्रात: भ्रमण के निकला तो वह दिखाई पड़ा। चुस्त दुरुस्त कंधे में झोला लटकाये हुये। वह मुझे देख कर मुस्कराया। प्रत्युत्तर में मैंने भी अपनी लुभावनी मुस्कान बिखेर दी। पहल उसीने की। 

 'मॉर्निंग वाक' को जा रहे हैं?' 

 'जी हाँ।' 

'अभी इतनी देर में!' 

'क्यों अभी नौ ही तो बजा है।' 

'मेरे लिये तो नौ बजे बहुत देर हो जाती है। मैं साढ़े सात बजे ही निकल जाता हूँ। बहुत ही अच्छा समय रहता है 'मॉर्निंग वाक' के लिये।' 

'सही फरमाया आपने। पर नौ बजे भी कोई देर नहीं हुई है। वैसे समय अपना है, मैं ऑफिस जाने के झंझट से मुक्त हो चुका हूँ।' 

'रिटायर तो मैं भी हो चुका हूँ। दस साल पहले। फिर भी देखिये हर रोज सुबह साढ़े सात बजे बिना नागा निकल जाता हूँ।' 

 जिस हिसाब से वह कमर में हाथ रख कर इत्मिनान से बातें कर रहा था, मुझे लगा कि ढील दे दो तो वह घंटों ऐसे ही खड़े-खड़े बातें करता रहेगा। 

मैंने इतने कष्ट के साथ यह मॉर्निंग वाक की रुटीन बनाई है, वह टूट जायेगी। एक बार रुटीन टूटी तो फिर शुरू करने में कई दिन निकल जायेंगे। वह कहे जा रहा था-  

'एक घंटा वाक करता हूँ। तेज चाल वाला ब्रिस्क वाक, समझ रहे हैं ने आप। उसके बाद में पार्क में बैठ कर आधा घंटा प्राणायाम करता हूँ। अभी बाजार से हरी सब्जी ले कर लौट रहा हूँ। मैं नाश्ते में रोज हरी सब्जी खाता हूँ। दस साल पहले रिटायर हुआ। मुझे देखिये अभी तक फिटफाट हूँ।' 

'फिर भी काम तो रहते ही हैं।' कह कर खिसियानी सी हँसी के साथ आगे बढ़ गया। जान बची लाखों पाये। जान कहाँ बची साहब चार दिनों के बाद वे फिर दिख गये। मैं कन्नी काट कर निकले ही वाला था कि उन्होंने धर दबोचा। 'आज फिर आप देर से निकले हैं। अब तो धूप भी निकल आई है। यह देखिये आज मुझे ताजे टमाटर मिल गये। मैं रोज सुबह टमाटर का रस पीता हूँ। आप भी पिया कीजिये। स्वास्थ्य के लिये बड़े लाभदायक हैं टमाटर।' 

'अभी मैं चलता हूँ, मुझे देर हो जायेगी।' मैंने जान छुड़ाने का प्रयत्न किया। 

'अरे आप तो कहते थे कि समय अपना है।' और वह ह ह ह ह कर हँसने लगा। कहने का मन तो हुआ कि समय अपना है तो क्या तुम पर लुटा दूँ। पर बिना कुछ कहे कुढ़ता हुआ आगे निकल गया। और मैंने मार्निंग वाक का अपना रास्ता बदल दिया। अपनी किस्मत इस नये रूट पर भी एक दिन उससे फिर मुलाकात हो गई। 

'अरे तो आप इस तरफ से जाते हैं। तभी आपसे इतने दिन मुलाकात नहीं हुई।' 

'जी।' मैंने कहा। 

'हाँ यह रास्ता आपके लिये आसान पड़ता होगा। इसमें कम चलना पड़ता है। अपना तो वही मेन रोड वाला रास्ता है। पूरे छह किलोमीटर का है।'

जलभुन कर मैंने पूछा, 'तो आप आज इस तरफ कैसे? 

'आगे नुक्कड़ पर हरी सब्जी वाला बैठता है। यह देखिये ताजा मेथी। मधुमेह में बहुत लाभदायक है।' 

'तो आपको मधुमेह है।' 

'हाँ वही एक बीमारी है। नहीं तो देख लीजिये मैं एकदम फिटफाट हूँ। दस साल हो गये हैं मेरी रिटायरमेंट को। आप कब रिटायर हुये?' 

'मुझे भी दस साल हो गये हैं।' मैंने कह दिया हालाँकि मुझे अभी दो ही साल हुये हैं। 

'तो आप भी अड़सठ साल के हैं।' 

'नहीं तो मैंने अभी अठहत्तरवाँ पूरा किया है।' मैंने जड़ दिया। उसके मुँह पर जो भाव आये उन्हें देख कर मुझे अपूर्व सुखानुभूति हुई। अपने इस झूठ पर मुझे गर्व होने लगा। मैंने अपना बासठवाँ साल ही पूरा किया है। 

'अभी तो आप कह रहे थे कि आपको रिटायर हुये दस साल ही हुये हैं।' वह बहुत ही कन्फ्यूज्ड लग रहा था। 

'जी हाँ। मैं एक वैज्ञानिक हूँ। हमारे यहाँ रिटायरमेंट नहीं होता है। जब तक काम करने की इच्छा हो करो। दस साल पहले मैंने सोचा कि अब बहुत हो गया। अब रिटायर हो कर अपने बाकी शौक पूरे करूँ। अड़सठ साल में ही रिटायरमेंट ले लिया।' 

'आप लगते तो नहीं हैं अठहत्तर साल के।' 

'जी मैं अठहत्तर साल का ही हूँ।' अब मुझे उससे बात करने मैं बहुत मजा आने लगा था। 

'देखिये अभी तक एकदम फिटफाट हूँ। रोज छह बजे से आठ बजे तक कराटे की प्रैक्टिस करता हूँ। नौ बजे से दस बजे तक प्रात: भ्रमण के लिये जाता हूँ। आप भी आइये मेरे साथ। छह बजे से कराटे की प्रैक्टिस कीजिये। नौ बजे मार्निंग वाक कीजिये। आपकी यह मधुमेह की बीमारी भी दूर हो जायेगी। आप हैं तो अभी अड़सठ के पर दिखने में मुझसे बड़े लगते हैं। 

'अच्छा अभी मैं चलता हूँं। घर में इंतजार हो रहा होगा।' वह खिसकने लगा। 

'कल से आप आ रहे हैं तो कराटे के लिये।' मैंने पीछे से आवाज दी। कहीं हाँ बोल देता तो लेने के देने पड़ जाते पर वह हाँ बालने टाइप का नहीं लगा था। वह दिन है और आज का दिन है वह मुझे जब भी दिखाई पड़ता है हमेशा दूसरी तरफ के फुटपाथ पर दिखाई पड़ता है। मुझे देखते ही फुटपाथ बदल लेता है। मैं भी कहाँ शिकायत कर रहा हूँ!

 


5 comments:

Shiv said...

शानदार पोस्ट! बहुत मज़ा आया आपकी पोस्ट पढ़कर.

अजय कुमार said...

नहले पर दहला , रोचक पोस्ट

Udan Tashtari said...

बहुत मजेदार...वैसे आप ७८ ले लगते नहीं..हा हा!!

RAJNISH PARIHAR said...

शानदार पोस्ट!....यही जीवन है....

Anuj Rathi said...

बहुत अच्छा लिखा है सर. वाक़ई मज़ा आ गया पढ़ कर :)