Monday, July 6, 2009

बहुत मनुहार के बाद भी...



कहानी रुकी नहीं

हम अनदेखा करते गये, होनी थी कि टली नहीं
मोड़ ले कर आगे बढ़ गई, कहानी रुकी नहीं

विकट पगडंडियाँ थी और घूप थी तेज
हम प्यासे रह गये पनिहारिन थी कि रुकी नहीं

बहती रही पुरवाई, और भीगती गई पलकें
साश्रु नयनों से पर एक भी आँसू टपका नहीं

हवाओं ने रुख फेरा और दिन जल्दी ढला नहीं,
रोशनी करते रहे रात भर सुबह का कोई पता नहीं

अब कौन जाने क्या है क्षितिज के उस पार
वहाँं जाने की राह कभी हमें मिली नहीं

करवटो की कहानी सिलवटों मे उलझती गई
मन का हिंडोला था कि कभी रुका नहीं

जिह्वा में अंकुश था होंठ थरथरा कर रह गये
बदलते गये अर्थ मौन के, शब्दों का पता नहीं

कुछ भी तो नहीं होता सरल यदि हम पी लेते गरल
जिन्दगी के घूँट पीते रहे, पर जिन्दगानी रुकी नहीं

बहुत मनुहार के बाद भी पाहुन रुका नहीं
प्यार होते होते रह गया पर हुआ नहीं

मथुरा कलौनी

8 comments:

Vinay said...

अच्छी कविता है

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चर्चा । Discuss INDIA

Murari Pareek said...

waah adbhut bahut hi sundar rachnaa hai aisi rachnaao ki tarif nahi hoti !!

cartoonist anurag said...

bahut shandar rachna hai...
badhai ho aapko........

नीरज गोस्वामी said...

करवटो की कहानी सिलवटों मे उलझती गई
मन का हिंडोला था कि कभी रुका नहीं
वाह...क्या अंदाज़ है...बहुत खूब...
नीरज

निर्मला कपिला said...

करवटो की कहानी सिलवटों मे उलझती गई
मन का हिंडोला था कि कभी रुका नहीं
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्

निर्मला कपिला said...

करवटो की कहानी सिलवटों मे उलझती गई
मन का हिंडोला था कि कभी रुका नहीं
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

M VERMA said...

बहुत सुन्दर