Monday, January 26, 2009

सूज़ैन का बिस्तर

मीनाक्षी - पहले तुम बोलो।
     
  गनेश - मैं पहले क्यों बोलूँ? पहल तुमने की है। तुम ही पहले बोलो।
     
  मीनाक्षी - नहीं तुम। यू फर्स्ट।
     
  गनेश - सवाल ही नहीं उठता। यू फर्स्ट। लेडीज फर्स्ट।
     
  मीनाक्षी - देखो पहले आप, पहले आप में गाड़ी छूट जाएगी।
     
  गनेश - जिसको गाड़ी पकड़नी हो, वो चिंता करे। अपन की कोई गाड़ी नहीं छूट रही।
     
  मीनाक्षी - हूँ ... तो गणेश मैं...
     
  गनेश - गणेश नहीं, गनेश।
     
  मीनाक्षी - शुद्ध शद तो गणेश है।
     
  गनेश - गनेश मेरा नाम है, कोई व्याकरण का विषय नहीं।
     
  मीनाक्षी - ठीक है ठीक है। लो तुम्हारी शिष्या सूज़ैन आ गई।
 
  सूज़ैन - गानेश, मैं तुमको खोज रही थी।
     
  मीनाक्षी - आओ सूज़ैन, तुम अच्छे मौके पर आई।
     
  सूज़ैन - मैं जब भी आती वही मौका अच्छा होता है।
     
  गनेश - हूँ।
     
  मीनाक्षी - हूँ क्या?
     
  गनेश - मैं जब भी आती हूँ, वही मौका अच्छा होता है।
     
  सूज़ैन - ठीक है गुरु जी। मैं जब भी आती हूँ, वही मौका अच्छा होता है।
     
  मीनाक्षी - गुरु जी?
     
  सूज़ैन - मैंने गानेश को अपना गुरु जी बनाया है।
     
  गनेश - (मुँह बनाता है।) इस वाक्य में बहुत गलतियाँ हैं, सूजन।
     
  मीनाक्षी - क्यों बेचारी का नाम बिगाड़ रहे हो! नाम सूजन नहीं सूज़ैन है।
     
  गनेश - मैं इसको कितनी बार बता चुका हूँ कि मेरा नाम गानेश नहीं गनेश है। पर यह गानेश ही पर अटकी हुई है। अब मैंने भी तय किया है कि मैं इसे सूजन बुलाऊँगा, फिर देखता हूँ इसका मुँह सूजता है कि नहीं।
     
  (मीनाक्षी हँसती है।)
     
  सूज़ैन - सूजन क्या होता है?
     
  मीनाक्षी - थोड़ी देरी के लिए अपना हिंदी अध्याय बंद रखो। मैं जो बताने वाली थी उसे सुनो। कल गनेश हमें बाहर खाना खिला रहा है।
     
  गनेश - मैंने ले जाने की बात की थी, खिलाने की नहीं। सब अपना-अपना बिल चुकाना।
     
  मीनाक्षी - (हँसती है) ठीक है, ठीक है। तुम जैसे कंजूस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है।
     
  सूज़ैन - गान...गनेश, मुझे तुमसे हिंदी के बारे में बात करनी है।
     
  गनेश - ठीक है।
     
  सूज़ैन - आज शाम को?
     
  गनेश - ठीक है।
     
  सूज़ैन - बिस्तर में?
     
  गनेश - क्या...!!
     
  मीनाक्षी - ये क्या हो रहा है! मैं चलती हूँ।
     
  गनेश - नहीं रुको मीनाक्षी। यह क्या बकवास कर रही हो तुम सूज़ैन?
     
  सूज़ैन - तुम्हारे पास टाइम नहीं है तो...
     
  गनेश - तुम मुझे गुरु मानती हो और ऐसी बातें कर रही हो! तुमने मुझे समझ क्या रखा है।
     
  सूज़ैन - मैंने क्या कहा जो तुम गुस्सा हो रहे हो।
     
  गनेश - बिस्तर में बताने को कह रही हो और कहती हो कि मैंने क्या कहा!
     
  सूज़ैन - बिस्तर में नहीं बताओगे तो समझ में कैसे आएगा।
     
  गनेश - फिर...फिर..
     
  मीनाक्षी - गनेश मुझे लगता है कि यहाँ कुछ गड़बड़ है।
     
  गनेश - कुछ क्या, बहुत गड़बड़ है।
     
  मीनाक्षी - सूज़ैन तुम हिंदी बिस्तर में क्यों सीखना चाहती हो।
     
  सूज़ैन - मुझे प्रॉब्लम है। मैं स्लो हूँ। गनेश डीटेल में बताएगा तो मुझे समझ में आएगा।
     
  (मीनाक्षी हँसने लगती है और हँसते हँसते लोट-पोट हो जाती है।)
     
  गनेश - अब तुमको क्या हुआ!
     
  मीनाक्षी - नहीं समझे? सूज़ैन तुम्हें बिस्तर में नहीं विस्तार में बताने को कह रही है।
     
  गनेश - विस्तार... बिस्तर... विस्तार। हे भगवान! अर्थ का अनर्थ इसी को कहते हैं!
     
  मीनाक्षी सूज़ैन को समझाती है। बिस्तर और विस्तार में अंतर बताती है। सूज़ैन शर्माती है और झिझकती है। फिर तीनों हँसते हैं।

 

3 comments:

सुप्रतिम बनर्जी said...

बहुत अच्छा लगा। पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे तीनों के साथ मैं भी कहीं बैठा हूं। बस, वे बोल रहे हैं और चूंकि मैं पढ़ रहा हूं, इसलिए बोल नहीं सकता। बहुत ही सुंदर।

अनिल कान्त said...

आपका लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा ...


अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

कडुवासच said...

... रोचक है।