Wednesday, August 13, 2008

युद्धभूमि

कल यहाँ युद्ध का उन्माद था
आज लाशों की सड़ाँध
ले कर आया नया प्रभात है
अब यहाँ कोई नहीं आयेगा
यहाँ न तोपों की गर्जन है
न ही कैमरे और न बरखा दत्त है

चुके हुये युद्ध में कौन रुचि दिखाता है
एक नये युद्ध की खोज में आज का संवाददाता है।

इस युद्धभूमि में एक बार फिर
मनभावन हरियाली छायेगी
खेत लहलहायेंगे
और प्रतीक्षा करेंगे
एक नये उन्माद की
एक नये विनाश की

वही धरती है वही आसमान
क्षितिज सिमटता जा रहा है
रुदन और क्रंदन ही जीवन स्पंदन
बनता जा रहा है

कौन करेगा शांति नृत्य
कौन पहनेगा पायल
अब बचा ही है कौन
जिसके पाँव नहीं हों घायल

-मथुरा कलौनी

3 comments:

Prabhakar Pandey said...

कौन करेगा शांति नृत्य
कौन पहनेगा पायल
अब बचा ही है कौन
जिसके पाँव नहीं हों घायल।

सादर नमस्कार।
यथार्थ, सटीक एवं रोचकतापूर्ण। आधुनिक समाज का मार्मिक चित्रण सरल और सटीक भाषा में।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा.

आशा जोगळेकर said...

bahut badhiya.