Saturday, August 2, 2008

कहॉं कमी रह गई?

मेरे एक कोरियन मित्र हैं। नाम है री।
अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मलनों में उनसे मुठभेड़ होती रहती है। मुझे देखते ही वे तपाक से बालते हैं
हल्‍लो मिस्‍टर कलौनी
मैं बोलता हूँ हल्‍लो मिस्‍टर री
वे बालते हैं हाउ आर यू
मैं बोलता हूँ हाउ आर यू

इससे आगे मैं कुछ भी पूछूँ, उत्‍तर में वे बड़ी प्‍यारी सी मुसकान बिखेर देते हैं। क्‍यों कि इससे आगे वे अँग्रेजी में नहीं बोल पाते। कोरिया इतना उन्‍नत देश है पर वहॉं के लोग अँग्रेजी नहीं बोल पाते। हमें देखो हम अँग्रेजों से अच्‍छी अँग्रेजी बोलते हैं।

उत्‍तरप्रदेश के शहर सहारनपुर के एक होटल में एक बार मैंने रिशेप्‍शन में फोन कर अपने कमरे में एक बीयर भेजने के लिये कहा। रिशेप्‍शन की लड़की ने कहा,
सौरी सर हम बीयर 'प्रोभाइड' नहीं कर पायेंगे।

उसके 'प्रोभाइड' शब्‍द के प्रयोग पर मन प्रसन्‍न हो गया था। लगा था, हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। देश का भविष्‍य सुरक्षित है। इस विशुद्ध हिन्‍दी घाटी में जब अँग्रेजी के 'प्रोभाइड' जैसे शब्‍द का प्रयोग इतना आम है तो देश के भविष्‍य के बारे में चिंता करना व्‍यर्थ है।

पहली बार जब विलायत गया था तो मैंने पाया कि अँग्रेज अँग्रेजी कर उच्‍चारण ठीक से नहीं करते। अँग्रेजों का अँग्रेजी ज्ञान भारतीयों की तुलना में उन्‍नीस ही पड़ता है। अँग्रजों की अँग्रजी पर अमेरिकन छा गई है। शायद यही कारण है कि अँग्रेज अब उतनी तरक्‍की नहीं कर रहे हैं।
पर हमारी अँग्रजी अभी तक प्‍योर है। वैसी ही जैसी अँग्रेज छोड़ कर गये थे।

वैसे देखा जाय तो इंगलैण्‍ड और अमेरिका का भी भविष्‍य उज्‍वल है। क्‍यों न हो वहॉं प्राय: सभी बच्‍चे अँग्रेजी में ही बोलते हैं। हमारे भारत में अभी तक यह स्‍थिति नहीं आई है। यहॉं आज भी कई स्‍कूल ऐसे है, विशेष कर राजकीय विद्यालय जो आरंभिक शिक्षा प्रांतीय भाषा में ही देते हैं। मुझे उम्‍मीद है कि बहुत शीघ्र ही स्‍थिति में सुधार हो जायेगा। हॉं संभ्रांत परिवारों की बात अलग है। उत्‍तराखण्‍ड से लेकर उत्‍तर कन्‍नड़ तक संभ्रांत परिवार के बच्‍चे आरंभिक शिक्षा अँग्रेजी में ही लेते हैं।

कभी कभी मन में शंका भी होती है कि कोरिया जापान जैसे देश जो दुनिया भर में छाये हुये हैं, बिना अँग्रेजी के कैसे इतनी तरक्‍की कर गये! वहॉं के लोग अँग्रजी के हैव-नो-हैव जैसे दो चार शब्‍दों से ही काम चला लेते हैं। हमारे देश में बेंत मार-मार कर अँग्रेजी सिखाई जाती है। हम अँग्रजों से अच्‍छी अँग्रजी बोल लेते हैं। पर पता नहीं कहॉं कमी रह गई?

8 comments:

Anil Kumar said...

अंगरेजी अंगरेज बोलें तो उनकी अपनी भाषा है। कोई और बोले तो "काल सेंटर" हो जाता है। कुछ दिन पहले एक "V9Y" जी की पोस्ट पढ़ी थी। उसमें आपके द्वारा पूछे गये इसी प्रश्न का उत्तर दिया गया है, वो भी ठोस आंकड़ों में। पढ़िये!

L.Goswami said...

हमें आदत है अंग्रेजियत की इतनी किसी और को क्या होगी.सुंदर पोस्ट

परमजीत सिहँ बाली said...

badhiyaa post likhi hai.

Vibha Rani said...

nakal karake koii bhii aage nahi badh sakta. maulik hona to sapna dekhana hai.

Amitabh Saxena said...

Bahut achcha laga aapke vichar padhkar. Yadi Hindi blogging ki yahi raftar rahi to Hindi angrezi ko bhi peeche chhod degi.

डॉ .अनुराग said...

सही चिंतन है मित्र...पर अपने भारतीय इसे समझे तब ना ...

~nm said...

क्यूंकी हम नक्ल करते रह गये. अक्ल इस्तेमाल करना भूल गये :)

मथुरा कलौनी said...

@ anil
धन्‍यवाद

@ lovely kumari
जब अंग्रेजी घुट्टी में िपलाई जाय तो आदत तो पड़नी ही है :)

@ परमजीत बाली
धन्‍यवाद

@ vibha rani
:)

@ amitabh saxena
आपने सही फरमाया। और कुछ नहीं तो अँग्रेजी मो देचनागरी में लिखने लगेंगे

@ अनुराग
यही तो विडंबना है

~nm
कभी कभी अक्‍ल लगा कर भी नक्‍ल करते हैं :)