Saturday, July 19, 2008

उत्तराखण्ड में टनकपुर से पिथैरागढ़ की यात्रा

उत्तराखण्ड में टनकपुर से पिथैरागढ़ की यात्रा

पिथौरागढ़ जाने के लिए अंतिम रेलवे स्टेशन टनकपुर से आगे पहाड़ी मार्ग पर बस से यात्रा करनी पड़ती है। बस का मार्ग एक विशेष वैज्ञानिक ढंग से बनाया गया है तथा इसमें चलनेवाली बसें भी विशेष पद्धति से चुनी जाती हैं। प्रयत्न यही रहता है कि बस अधिक से अधिक हिचकोले खाए, प्रत्येक हिचकोले में वह अपने चारों पहियों में लड़खड़ाए और इसके सभी अंग खड़खड़ाएँ। इस प्रकार पिथौरागढ़ आने वाले यात्रियों को मार्ग ओर बसों की सहायता से अच्छी तरह हिलाया, कँपाया, उछाला और अधमरा बनाया जाता है ताकि वे पिथौरागढ़ में प्रवेश करने योग्य हो सकें। इसके बाद प्रवेश-कर के रूप इस महत्वपूर्ण कार्य का सामान्य पारिश्रमिक देने के बाद ही यात्री पिथौरागढ़ में प्रवेश कर पाते हैं।


पुण्य कमाने, किसी पाप का प्रायश्चित करने या अपना चरित्र सुधारने के लिए लोग कैलाश पर्वत तक की यात्रा करते हैं। पिथौरागढ़ कैलाश जाने के रास्ते में ही पड़ता है। कई बार देखा गया है कि टनकपुर से बस से पिथौरागढ़ पहुँचते-पहुँचते कैलाश यात्री अपने चरित्र में इतना सुधार पा लेते हैं कि उन्हें कैलाश जाने के आवश्यकता ही नहीं रह जाती। वे पिथौरागढ़ से ही वापस लौट पड़ते हैं।

7 comments:

मसिजीवी said...

जी इन छुट्टियों में गए थे...यही रास्‍ता लिया था भयानक लैंडस्‍लाइडों वाला इलाका रहा। सड़के बेहद खराब हैं खासकर टनकपुर के एकदम बाद बहुत बुरे बुरे पैच हैं। बसों के विषय में नहीं कह सकता क्‍योंकि अपने वाहन से गए थे पर सड़क की तस्‍दीक करते हैं। यूँ हम आगे रामेश्‍वर से बजाए पिथौरागढ जाने के बेरीनाग की ओर मुड़ गए गए थे।

ghughutibasuti said...

अब तो पिथौरागढ़ जाने का इरादा और भी पक्का हो गया।
घुघूती बासूती

~nm said...
This comment has been removed by the author.
~nm said...

आपका पीठोरगढ़ किस सिलसिले में जाना हुआ? मैं करीब 5 साल पहले गयी थी. बहुत अच्छी यादें हैं वहाँ की.

इतना सुकून था वहाँ. और मज़ेदार बात यह है की हम इसी जुलाइ महीने में गये थे. इतनी बारिश थी की हूमें 9 घाटे लगे थे हल्द्वनि से पीठोरगढ़ पहुँचने में.

मथुरा कलौनी said...

मेरी जन्‍मभूमि पिथैरागढ़ है।

पंकज सिंह महर said...

कलौनी जी, नमस्कार,
यह रास्ता वास्तव में थोड़ा दुर्गम है,जब से यह मार्ग बना था तब तो शुरु में बहुत लैंड स्लाइड होता था, लेकिन समय के साथ-साथ वह काफी हद तक मजबूत होने लगा था, इसी बीच में धौलीगंगा परियोजना के कारण इसे चौड़ा करना पड़ा तो अब स्थिति थोड़ा खराब हो गई है। पर्वतीय मार्गों पर चट्टान तोड़्ने के लिये पुराने मैनुअल तरीके अपनाने के बजाय जो ब्लास्टिंग की जाती है, उससे काफी दिक्कत बाद में होती हैं। मध्य हिमालय की चट्टानें मजबूत हैं नहीं, एक ब्लास्टिम्ग इनको हिला कर रख देती है और बाद में धीरे-धीरे पानी पिये, दरार खाये पहाड़ दरकने लगते हैं।
प्रदेश सरकार को जरुर कुछ आरामदायक बसें चलवानी चाहिये, पर्यटक प्रदेश बनाने के लिये पर्यटकों की ही जरुरत होती है और बिना आवागमन की अच्छी सुविधाओं के यह योजना मूर्त रुप कैसे ले पायेगी? मेरी समझ में तो नहीं आता.....हो सकता है सरकार ने सोचा हो कुछ......?

मथुरा कलौनी said...

धौसिया जी


इस सड़क से मेरा नाड़ीभेद है। बहुत पुरानी पहचान है। कच्‍चे पहाड़ की वजह से यह सड़क तो नहीं सुधरनेवाली। हॉं आप जैसे नवयुवकों से नये निर्माण की अपेक्षा है।