Wednesday, December 5, 2007

हम भी आ गये हैं

हम अपने को बहुत पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे थे। जिसे देखो वही चिट्ठा लिख रहा है। हालांकि अंतर्जाल में हमारी उपस्‍थित है, फिर भी हमें सीधे और परोक्ष रूप से बताया गया है कि आप चिट्ठाकार नहीं तो कुछ भी नहीं हैं, आप पिछली सदी के आदमी हैं, यू आर नॉट काउन्‍टेड इत्‍यादि। हम पुराने अवश्‍य है पर पिछली सदी के - नो वे।

तो भैया हम आ गये हैं। आ तो गये हैं पर अब समस्‍या यह है कि आकर करें क्‍या? अनर्गल लिखने के पक्ष में हम नहीं हैं। यहॉं हमें जो कुछ भी लिखने को सूझे बकवास ही सूझे है। बकवास न परोसें तो क्‍या परोसें। फिर कौन पढ़ेगा हमारी बकवास और क्‍यों पढ़ेगा।

इन्‍ही विचारों के साथ हम विचारे अपना पहला चिट्ठा समाप्‍त कर रहे हैं। हमें तो नहीं लगता है कि इस अंतहीन अंतर्जाल के बेढब जाल में कोई मार्ग भी हो सकता है फिर भी यदि कोई सिरफिरा हमारा मार्गदर्शन कर सके तो निश्‍चित जानिये हम आभरी रहेंगे।

मथुरा कलौनी

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