भैया के कई तरह के उच्चारण मिलते हैं... भइया...भाया... बैया.. ब्बैया आदि। पर फोन में उसने कहा था (प फ ब भ) का मिलाजुला सॉफ्ट बड़े जतन से विकसित किया हुआ स्वर और ‘या’ तो मुँह से ऐसे फिसला जैसे पूरे मुँह में मक्खन की कोटिंग इसी उद्देश्य से की गयी हो।
- बईया 20 जून को कॉटेज मिल जायेगा क्या।
- हाँ मिल जायेगा।
- कितना लगेगा?
- कितने लोग हैं आप लोग ?
- हम चार लड़कियाँ हैं और एक बच्चा है।
- बच्चे की उम्र ?
- यही 13,14 15 साल
- पाँच व्यक्तियों के लिए एकदिन का पड़ेगा 5889 रुपये
- ऐंह यह तो बहुत ज्यादा है। कम नहीं हो सकता है क्या ? हम लोग लोकल हैं। .....गढ़ के ही हैं।
- ठीक है आपके लिए 5300 रुपये।
- यह तो बहुत ज्यादा है।
- …..गढ़ बहुत बड़ा शहर है। आप अन्यत्र देख लें।
- हम लोग स्टूडेंट हैं।
- ओह, ठीक है आप 4500 दे दीजिये।
- आप 4000 लगा दीजिये।
- जी नहीं 4500, वह भी आपलोग स्टूडेंट हैं इसलिए।
- ठीक है आप बुक कर दीजिये।
- बुक करने के लिए पेमेंट करना पड़ेगा।
- कितना?
- पूरा।
- हमारे पास तो तीन या चार सौ रुपये ही होंगे अभी।
- जीपे या पेटीएम से कर दें।
- वह तो नहीं हैं।
- ठीक हैआप पेमेंट की व्यवस्था कर लीजिये। फिर संपर्क कर सकती हैं।
अतिथियों-आगंतुकों के साथ मेरा अनुभव सुखद ही रहा है। इस प्रकार की हुज्जत का सामना शायद पहलीबार करना पड़ रहा था। पर .....गढ़ मेरी कमजोरी रहा है। महिला ने अपना नाम बताया था। सोशल मीडिया से पता चला कि महिला बेंगलुरू में नौकरी करती हैं या करती थीं। इस कहानी को आगे बढ़ाने के लिए महिला का नाम गीतिका रख लेते हैं। जब गीतिका ने दूसरी बार संपर्क किया तो कॉटेज बुक हो चुका था।
दूसरे दिन गीतिका का फोन आता है कि हम लोग कॉटेज देखने जा रहे हैं।
मैंने कहा कि अभी वहाँ जाना ठीक नहीं। वहाँ लोग हैं उनको डिस्टर्ब करना ठीक नहीं।
कुछ समय बाद मेरे रिसॉर्ट मैनेजर का फोन आता है कि कोई गीतिका अपने दोस्तों के साथ रिसॉर्ट देखने आई है और कॉटेज में जाने की जिद कर रही है। कहती है हम तो लड़कियाँ हैं हम कहीं भी जा सकती हैं।
उन्होंने कॉटेज शांति-तंद्रा भंग की और मेहमान के साथ सेल्फी ली।
मैंने रिसॉर्ट मैनेजर से कहा कि पूरे प्रकरण को ‘ऐसा-भी-होता-है’ के खाते में डाल दो और भूल जाओ।
बात यहाँ समाप्त नहीं होती। गीतिका का फोन आता है
- बैइया कॉटेज आज खाली है क्या?
- हाँ आज अभीतक तो बुक नहीं हुआ है।
- बैइया हमारे लिए बुक कर दो। 4000 रुपये जीपे कर देती हूँ।
- 4000 नहीं 5300 जीपे कर दीजिए
उसने फिर हुज्जत शुरू की। मैंने कहा 5300 और फोन काट दिया। पांच मिनट बाद उसने जीपे से 5300 भेज दिये।
मैने रिसॉ़र्ट मैनेजर को बता दिया कि गीतिका ने कॉटेज बुक कर लिया है। व्यर्थ तूतूमैंमैं में न पड़ना। धैर्य से काम लेना और संभाल लेना।
दूसरे दिन मैंने रिसॉ़र्ट मैनेजर को फोन किया
- गीतिका लोग गये?
- हाँ गये।
- सब ठीक है?
- कुछ ठीक नहीं हैं। कॉटेज आज के लिए ब्लॉक कर दीजिये। बुकिंग नहीं लीजिये।
- क्यों?
- उन लड़कियों ने सिगरेट पी थी। पूरे कॉटेज में सिगरेट के ठुट्टे और दारू की बोतलें पड़ीं हुई हैं। कॉटेज के पर्दे बदलने पड़ेंगे, उनमें सिगरेट की बास समा गयी है।
- ठीक है। आज के लिए ब्लॉक कर देता हूँ।
- और
- और क्या
- खाने के बिल में भी गीतिका मोलभाव कर रही थी। मैंने मना किया और हमारी कंपनी पॉलिसी बताई तो गीतिका ने कहा कि वह रिसॉर्ट का गंदा रिव्हू देगी में।
गीतिका की प्रशंसा करनी पड़ेगी। वह आयी अपने दोस्तों के साथ। खाया पीया उधम मचाया पर उसने बहुत ही गंदा रिव्हू दिया। और अपने साथ आये चारों साथियों को टैग किया।
हमारा रिसॉर्ट एक होमस्टे है। टूरिस्टों को हम अपनी संस्कृति से अवगत कराते हैं। हमारा होमस्टे तो एक माध्यम है, यहाँ के लोग ही तो हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं। पर कुछ ऐसे लोग भी मिल ही जाते है।
कच्चा चिट्ठा
Friday, August 4, 2023
Saturday, November 27, 2021
Friday, September 4, 2020
Friday, September 7, 2018
Monday, August 6, 2018
निष्कासित – जातिप्रथा पर एक प्रहार
जातिप्रथा एक दुधारू गाय!
कलायन का नया नाटक,
निष्कासित, इस कुप्रथा के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालती हुई एक ऐसे गाँव की
कहानी है जिसमें रूढ़िवादी और प्रगतिशील विचारधाराओं का संघर्ष है। कलायन बेंगलुरु
में अपना 30 वाँ साल मना रही है, इस रोचक और विचारोत्तेजक नाटक निष्कासित के मंचन के साथ।
जागृति थिएटर
बेंगलुरु में अगस्त 31 से सितंबर 2, 2018
तक
और ए डी ए रंगमंदिरा
बेंगलुरु में सितंबर 2, 2018 को
https://in.bookmyshow.com/plays/nishkasit/ET00080358
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