Tuesday, December 29, 2009

चारों ओर चिल्लपों मची है

चारों ओर चिल्लपों मची है कि यह साल गुजर रहा है और नया साल आ रहा है। जब सभी इस तरह हमें बताने में जुटे हैं तो हम भी ऐलानिया तौर पर मान लेते हैं कि यह साल गुजर रहा है और नया साल आ रहा है। वैसे सच कहूँ मुझे पहले से ही मालूम था कि यह साल गुजर रहा है और नया साल आ रहा है।

सब लोग पीछे देख रहे हैं। लेखा जोखा कर रहे हैं कि इस गुजरते साल में क्या क्या हुआ। कौन सी फिल्म हिट रही। कौन सी हीरोइन सेक्सी रही। यह सब हमें ऐसे बताया जा रहा है जैसे कि दिसंबर के जाते न जाते उस हीरोइन की सेक्स अपील समाप्त हो जायेगी।
तो हमने भी साहब पीछे देखना शुरू किया

मोमबत्ती जलाई तो परवाना याद आया
दिसंबर में ही गुजरा जमाना याद आया
हम करते रहे काक चेष्टा बकुल ध्यानम
उनको कोई ले उड़ा हमें फसाना याद आया।

अब और पीछे नहीं देखा जाता। चलिये आगे देखते हैं।
सही समय है ज्ञान की बाँटने के लिये। जॉर्ज कारलिन के बारे में पढ़ रहा था। उनकी कही कुछ बातें यहाँ दे रहा हूँ।मुलाहिजा फरमाइये-

यह विडंबना ही है कि
हमारी इमारतें ऊँची हैं पर हमारी सहनशक्ति छोटी है
चौैड़ी सड़कें हैं पर सँकरा दृष्टिकोण है
हमारे खर्चे बड़े है पर हमारे पास जो भी है बहुत कम है
हम खरीदते ज्यादा हैंे पर आनंदित कम ही होते हैं
घर बड़े हैं परिवार छोटे। सुविधायें अधिक पर समय कम
डिग्रियाँ अधिक हैं पर अक्ल कम है। अधिक ज्ञान पर समझ कम है।

नया साल आप सब लोगों के लिये सुख, शांति और समृद्धि लाये।

Thursday, December 24, 2009

मैं भी कहाँ शिकायत कर रहा हूँ!

दफ्तरी जीवन से अवकाश प्राप्त करने के बाद अपनी दिनचर्या एकदम बदल गई है। सुबह देर से नींद खुलती है। आलस के मारे बिस्तर छोड़ते छोड़ते आठ तो बज ही जाते हैं। सुबह घूमने की इच्छा इच्छा ही रह गई है। आज दृढ़ निश्चय के साथ सुबह प्रात: भ्रमण के निकला तो वह दिखाई पड़ा। चुस्त दुरुस्त कंधे में झोला लटकाये हुये। वह मुझे देख कर मुस्कराया। प्रत्युत्तर में मैंने भी अपनी लुभावनी मुस्कान बिखेर दी। पहल उसीने की। 

 'मॉर्निंग वाक' को जा रहे हैं?' 

 'जी हाँ।' 

'अभी इतनी देर में!' 

'क्यों अभी नौ ही तो बजा है।' 

'मेरे लिये तो नौ बजे बहुत देर हो जाती है। मैं साढ़े सात बजे ही निकल जाता हूँ। बहुत ही अच्छा समय रहता है 'मॉर्निंग वाक' के लिये।' 

'सही फरमाया आपने। पर नौ बजे भी कोई देर नहीं हुई है। वैसे समय अपना है, मैं ऑफिस जाने के झंझट से मुक्त हो चुका हूँ।' 

'रिटायर तो मैं भी हो चुका हूँ। दस साल पहले। फिर भी देखिये हर रोज सुबह साढ़े सात बजे बिना नागा निकल जाता हूँ।' 

 जिस हिसाब से वह कमर में हाथ रख कर इत्मिनान से बातें कर रहा था, मुझे लगा कि ढील दे दो तो वह घंटों ऐसे ही खड़े-खड़े बातें करता रहेगा। 

मैंने इतने कष्ट के साथ यह मॉर्निंग वाक की रुटीन बनाई है, वह टूट जायेगी। एक बार रुटीन टूटी तो फिर शुरू करने में कई दिन निकल जायेंगे। वह कहे जा रहा था-  

'एक घंटा वाक करता हूँ। तेज चाल वाला ब्रिस्क वाक, समझ रहे हैं ने आप। उसके बाद में पार्क में बैठ कर आधा घंटा प्राणायाम करता हूँ। अभी बाजार से हरी सब्जी ले कर लौट रहा हूँ। मैं नाश्ते में रोज हरी सब्जी खाता हूँ। दस साल पहले रिटायर हुआ। मुझे देखिये अभी तक फिटफाट हूँ।' 

'फिर भी काम तो रहते ही हैं।' कह कर खिसियानी सी हँसी के साथ आगे बढ़ गया। जान बची लाखों पाये। जान कहाँ बची साहब चार दिनों के बाद वे फिर दिख गये। मैं कन्नी काट कर निकले ही वाला था कि उन्होंने धर दबोचा। 'आज फिर आप देर से निकले हैं। अब तो धूप भी निकल आई है। यह देखिये आज मुझे ताजे टमाटर मिल गये। मैं रोज सुबह टमाटर का रस पीता हूँ। आप भी पिया कीजिये। स्वास्थ्य के लिये बड़े लाभदायक हैं टमाटर।' 

'अभी मैं चलता हूँ, मुझे देर हो जायेगी।' मैंने जान छुड़ाने का प्रयत्न किया। 

'अरे आप तो कहते थे कि समय अपना है।' और वह ह ह ह ह कर हँसने लगा। कहने का मन तो हुआ कि समय अपना है तो क्या तुम पर लुटा दूँ। पर बिना कुछ कहे कुढ़ता हुआ आगे निकल गया। और मैंने मार्निंग वाक का अपना रास्ता बदल दिया। अपनी किस्मत इस नये रूट पर भी एक दिन उससे फिर मुलाकात हो गई। 

'अरे तो आप इस तरफ से जाते हैं। तभी आपसे इतने दिन मुलाकात नहीं हुई।' 

'जी।' मैंने कहा। 

'हाँ यह रास्ता आपके लिये आसान पड़ता होगा। इसमें कम चलना पड़ता है। अपना तो वही मेन रोड वाला रास्ता है। पूरे छह किलोमीटर का है।'

जलभुन कर मैंने पूछा, 'तो आप आज इस तरफ कैसे? 

'आगे नुक्कड़ पर हरी सब्जी वाला बैठता है। यह देखिये ताजा मेथी। मधुमेह में बहुत लाभदायक है।' 

'तो आपको मधुमेह है।' 

'हाँ वही एक बीमारी है। नहीं तो देख लीजिये मैं एकदम फिटफाट हूँ। दस साल हो गये हैं मेरी रिटायरमेंट को। आप कब रिटायर हुये?' 

'मुझे भी दस साल हो गये हैं।' मैंने कह दिया हालाँकि मुझे अभी दो ही साल हुये हैं। 

'तो आप भी अड़सठ साल के हैं।' 

'नहीं तो मैंने अभी अठहत्तरवाँ पूरा किया है।' मैंने जड़ दिया। उसके मुँह पर जो भाव आये उन्हें देख कर मुझे अपूर्व सुखानुभूति हुई। अपने इस झूठ पर मुझे गर्व होने लगा। मैंने अपना बासठवाँ साल ही पूरा किया है। 

'अभी तो आप कह रहे थे कि आपको रिटायर हुये दस साल ही हुये हैं।' वह बहुत ही कन्फ्यूज्ड लग रहा था। 

'जी हाँ। मैं एक वैज्ञानिक हूँ। हमारे यहाँ रिटायरमेंट नहीं होता है। जब तक काम करने की इच्छा हो करो। दस साल पहले मैंने सोचा कि अब बहुत हो गया। अब रिटायर हो कर अपने बाकी शौक पूरे करूँ। अड़सठ साल में ही रिटायरमेंट ले लिया।' 

'आप लगते तो नहीं हैं अठहत्तर साल के।' 

'जी मैं अठहत्तर साल का ही हूँ।' अब मुझे उससे बात करने मैं बहुत मजा आने लगा था। 

'देखिये अभी तक एकदम फिटफाट हूँ। रोज छह बजे से आठ बजे तक कराटे की प्रैक्टिस करता हूँ। नौ बजे से दस बजे तक प्रात: भ्रमण के लिये जाता हूँ। आप भी आइये मेरे साथ। छह बजे से कराटे की प्रैक्टिस कीजिये। नौ बजे मार्निंग वाक कीजिये। आपकी यह मधुमेह की बीमारी भी दूर हो जायेगी। आप हैं तो अभी अड़सठ के पर दिखने में मुझसे बड़े लगते हैं। 

'अच्छा अभी मैं चलता हूँं। घर में इंतजार हो रहा होगा।' वह खिसकने लगा। 

'कल से आप आ रहे हैं तो कराटे के लिये।' मैंने पीछे से आवाज दी। कहीं हाँ बोल देता तो लेने के देने पड़ जाते पर वह हाँ बालने टाइप का नहीं लगा था। वह दिन है और आज का दिन है वह मुझे जब भी दिखाई पड़ता है हमेशा दूसरी तरफ के फुटपाथ पर दिखाई पड़ता है। मुझे देखते ही फुटपाथ बदल लेता है। मैं भी कहाँ शिकायत कर रहा हूँ!

 


Thursday, December 17, 2009

बस हाइजैक

यह घटना वास्तव में घटी है।

रात का समय था। बस हल्द्वानी से दिल्ली जा रही थी। रात के करीब दो बजे बस रामपुर पहुँची, वहाँ चार व्यक्ति बस में चढ़े। उस समय बस के यात्री निद्रा की विभिन्न अवस्थाओं में थे। कोई खरर्ाटे ले रहा था तो कोई करवट बदल रहा था। उन चारों पर किसी का ध्यान नहीं दिया। उन्होंने सीटें से ही रिजर्व करा रखीं थीं। कंडक्टर ने उन्हें खाली सीटों में बिठाया। मुरादाबाद बाईपास पार होते ही उन चारों में से एक जिसके चेहरे में चेचक के दाग थे ड्राइवर के पास गया और उसकी कनपटी में रिवाल्वर सटा दी। बस को वे लोग एक सुनसान खेत में ले गये और रिवाल्वरों के जोर पर यात्रियों को एक एक करके बाहर निकाला और उनके गहने पैसे लूट कर अपने साथ लाए बोरों में भर लिया। उसके बाद उन लोगों ने बस और पैसेंजरों को छोड़ दिया। लुटी हुई बस आगे बढ़ गई।
बस गजरौला करीब आधे घंटे के लिये एक ढाबे में रुक कर आगे बढ़ ही रही थी कि वे चार फिर आ गए। चेचक के दाग वाला उनका मुखिया लग रहा था। उसने बस के यात्रियों से कहा, आप लोगों का सब सामान हम लौटा रहे है। सामान नीचे दरी में पड़ा हुआ है। अपना सामान उठा लीजिए। इसके बाद वे कार में बैठ कर रफूचक्कर हो गये। यात्रियों ने देखा कि लूटा हुआ कैश तो वहाँ नहीं था पर गहने और सब सामान दरी में था।
लुटेरों की इस अजीब हरकत का खुलासा बस के ड्राइवर ने किया। इस हाईवे पर जब कोई भी बस लुटती है तो उसका एक बँधा हुआ रेट पुलिस को जाता है। बस से लुटेरे कितना ही क्यों न लूट लें पुलिस को उससे कोई मतलब नहीं। उनको उनकी पूर्व निर्धारित राशि मिलनी चाहिए। इस बस को लूटने पर उन चारों ने पाया कि कुल मिला के सामान की कीमत से पुलिस का ही चुकता नहीं होगा। उन्होंने सामान लौटा दिया। पुलिस को बता देंगे कि सामान कम निकला इसलिए लौटा दिया। इस तरह वे पुलिस को देने से, यानी घाटे के सौदे से बच जायेंगे।

Tuesday, December 15, 2009

चिराग का भूत - हँसी से भरपूर प्रहसन

अब पुस्तक रूप में।
पढ़िए दशा
 
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