उत्तराखण्ड में टनकपुर से पिथैरागढ़ की यात्रा
पिथौरागढ़ जाने के लिए अंतिम रेलवे स्टेशन टनकपुर से आगे पहाड़ी मार्ग पर बस से यात्रा करनी पड़ती है। बस का मार्ग एक विशेष वैज्ञानिक ढंग से बनाया गया है तथा इसमें चलनेवाली बसें भी विशेष पद्धति से चुनी जाती हैं। प्रयत्न यही रहता है कि बस अधिक से अधिक हिचकोले खाए, प्रत्येक हिचकोले में वह अपने चारों पहियों में लड़खड़ाए और इसके सभी अंग खड़खड़ाएँ। इस प्रकार पिथौरागढ़ आने वाले यात्रियों को मार्ग ओर बसों की सहायता से अच्छी तरह हिलाया, कँपाया, उछाला और अधमरा बनाया जाता है ताकि वे पिथौरागढ़ में प्रवेश करने योग्य हो सकें। इसके बाद प्रवेश-कर के रूप इस महत्वपूर्ण कार्य का सामान्य पारिश्रमिक देने के बाद ही यात्री पिथौरागढ़ में प्रवेश कर पाते हैं।
पुण्य कमाने, किसी पाप का प्रायश्चित करने या अपना चरित्र सुधारने के लिए लोग कैलाश पर्वत तक की यात्रा करते हैं। पिथौरागढ़ कैलाश जाने के रास्ते में ही पड़ता है। कई बार देखा गया है कि टनकपुर से बस से पिथौरागढ़ पहुँचते-पहुँचते कैलाश यात्री अपने चरित्र में इतना सुधार पा लेते हैं कि उन्हें कैलाश जाने के आवश्यकता ही नहीं रह जाती। वे पिथौरागढ़ से ही वापस लौट पड़ते हैं।